5 साल में 35 हज़ार से अधिक दहेज हत्याएँ: हर दिन औसतन 20 महिलाओं की हत्याएँ

दैनिक किरनः यह मुद्दा सिर्फ एक “खबर” नहीं, हमारे समाज के लिए गंभीर चेतावनी है। दहेज के लिए होने वाली हत्याएँ अब भी बड़े पैमाने पर हो रही हैं और हालिया चर्चित निक्की भाटी केस ने इस पीड़ा को फिर सामने ला दिया है।

2017 से 2022 के बीच दहेज-सम्बन्धी हिंसा के कारण 35,493 महिलाओं की हत्या दर्ज हुई—यानी औसतन रोज़ लगभग 20 महिलाएँ अपनी जान गंवा रही हैं। यह आँकड़ा बताता है कि 1961 से दहेज निषेध कानून लागू होने के बावजूद सामाजिक व्यवहार में बदलाव अपेक्षा से बहुत कम हुआ है। नकद, गहने, गाड़ियाँ और महँगे उपहारों की “मांग” कई जगह अब भी शादी का अनकहा नियम बनी हुई है।

पृष्ठभूमि: निक्की भाटी केस से राष्ट्रीय बहस

ग्रेटर नोएडा का निक्की भाटी हत्याकांड हाल के दिनों में सुर्खियों में रहा। यह मामला अलग-थलग घटना नहीं, बल्कि उस व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है जहाँ विवाह के बाद दहेज की माँगें विवाद को हिंसा तक ले जाती हैं। ऐसे मामलों में अक्सर पहले मानसिक प्रताड़ना, फिर शारीरिक हिंसा और अंततः हत्या जैसे अपराध सामने आते हैं।

आँकड़ों का अर्थ

कुल दर्ज हत्याएँ (2017–2022): 35,493

दैनिक औसत: ~20 हत्याएँ प्रति दिन

झलक: यह समस्या किसी एक राज्य या वर्ग तक सीमित नहीं; ग्रामीण-शहरी दोनों क्षेत्रों में इसकी मौजूदगी है।

अंडर-रिपोर्टिंग: सामाजिक दबाव, पारिवारिक प्रतिष्ठा और आर्थिक निर्भरता के कारण कई घटनाएँ दर्ज ही नहीं हो पातीं—यानी वास्तविक संख्या और अधिक हो सकती है।

क्यों नहीं रुक पा रही दहेज हिंसा?

  1. सामाजिक स्वीकृति का अवशेष: “उपहार” और “सम्मान” के नाम पर दहेज को जायज़ ठहराने की प्रवृत्ति।
  2. आर्थिक और लैंगिक असमानता: महिला की आर्थिक निर्भरता उसे प्रतिरोध से रोकती है।
  3. धीमी न्याय प्रक्रिया: एफआईआर से लेकर चार्जशीट और सजा तक लंबी प्रक्रियाएँ, गवाहों पर दबाव।
  4. समझौते का दबाव: पारिवारिक/समुदायिक दबाव के चलते पीड़ित पक्ष शिकायत वापस लेने या समझौता करने को मजबूर हो सकता है।
  5. रोकथाम तंत्र की कमी: विवाह से पहले और बाद में परामर्श, सामुदायिक निगरानी और त्वरित सहायता तंत्र का अभाव।

कानून क्या कहता है?

दहेज निषेध अधिनियम, 1961: दहेज देना–लेना और माँगना अपराध है।

आईपीसी धारा 304B (दहेज मृत्यु): विवाह के सात वर्ष के भीतर मृत्यु और दहेज-प्रताड़ना का संबंध सिद्ध होने पर कठोर दंड का प्रावधान।

धारा 498A (क्रूरता): पति या ससुराल पक्ष द्वारा क्रूरता/प्रताड़ना पर दंडनीय प्रावधान।

साक्ष्य अधिनियम में धारणा (Presumption): दहेज-प्रताड़ना के प्रमाण मिलने पर अदालत आरोपित के विरुद्ध धारणा बना सकती है।

चुनौती यह है कि कानूनी प्रावधान होने के बावजूद क्रियान्वयन, जाँच की गुणवत्ता, त्वरित सुनवाई और पीड़िता की सुरक्षा में सुधार की बड़ी गुंजाइश है।

समाजसेवकों की राय (सार)

विवाह को लेन-देन से जोड़ने वाली सोच बदले बिना कानून अकेला पर्याप्त नहीं।

स्कूल–कॉलेज स्तर पर लैंगिक समानता और कानूनी साक्षरता पर पाठ्यक्रम/कार्यशालाएँ ज़रूरी।

सामुदायिक स्तर पर “दहेज-मुक्त विवाह” की सार्वजनिक शपथ, सामाजिक मान्यता और प्रोत्साहन।

पीड़ितों के लिए वन-स्टॉप सेंटर, कानूनी सहायता और आश्रय गृहों की पहुँच बढ़ाना।

क्या बदलना होगा? (कार्रवाई योग्य सुझाव)

  1. शून्य-सहिष्णुता की पारिवारिक नीति: विवाह से पहले ही दोनों परिवार लिखित रूप में दहेज–मुक्त घोषणा करें।
  2. डिजिटल प्रमाण सँजोना: धमकी/माँग से जुड़ी चैट, कॉल रेकॉर्डिंग (कानूनी सीमाओं में), लेन-देन के साक्ष्य सुरक्षित रखें।
  3. तुरंत रिपोर्टिंग: 112 आपातकालीन सेवा, स्थानीय महिला थाने, या नज़दीकी वन-स्टॉप सेंटर से संपर्क।
  4. कानूनी सहायता: ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) से निःशुल्क वकील और परामर्श।
  5. समुदाय की भागीदारी: मोहल्ला/ग्राम समितियाँ—शादी से पहले दहेज-शपथ, उल्लंघन पर सामाजिक बहिष्कार नहीं, बल्कि कानूनी रिपोर्टिंग को समर्थन।
  6. तेज़ ट्रायल के लिए मांग: दहेज हत्या और 498A मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट और समयबद्ध जाँच।
  7. आर्थिक सशक्तिकरण: महिला के नाम स्ट्रेडी आय स्रोत, जॉब स्किल, और बैंक खाते का नियंत्रण।

मीडिया और शिक्षण संस्थानों की भूमिका

संवेदनशील रिपोर्टिंग: पीड़िता-दोषारोपण (victim blaming) से बचना, केस की पहचान गोपनीय रखना।

पाठ्यक्रम और कैंपस अभियान: “दहेज-नहीं” क्लब, प्री-मैरिटल काउंसलिंग, पुरुष छात्रों की allyship पर विशेष सत्र।

मनोरंजन उद्योग: विवाह-समारोह के उपभोग-उन्माद और दहेज को महिमामंडित करने वाली कहानियों की जगह समानता-आधारित कथानक।

पीड़ित/सहायता चाहने वालों के लिए त्वरित संसाधन

आपातकालीन नंबर: 112

महिला हेल्पलाइन: 181 (कई राज्यों में सक्रिय)


निष्कर्ष

पाँच वर्षों में 35 हज़ार से अधिक दहेज-हत्याएँ बताती हैं कि समस्या केवल “कानून की किताब” से नहीं सुलझेगी। परिवार, समाज, संस्थाएँ और राज्य—सबको मिलकर दहेज के विरुद्ध स्पष्ट और कठोर सामाजिक-सांस्कृतिक संदेश देना होगा। शादी यदि साझेदारी है, तो उसमें सौदेबाज़ी की कोई जगह नहीं—यही संदेश हर घर तक पहुँचना चाहिए।

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