संवाददाता दैनिक किरनः उत्तर प्रदेश शासन ने पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की समयपूर्व रिहाई का आदेश शुक्रवार को जारी कर दिया। राज्यपाल की मंजूरी के बाद कारागार प्रशासन एवं सुधार सेवाएं विभाग ने प्रयागराज स्थित नैनी कारागार में आजीवन कारावास की सजा काट रहे उदयभान को रिहा करने का आदेश जारी किया है। हालांकि उनकी रिहाई तभी होगी, जब किसी अन्य वाद में उन्हें निरुद्ध रखना वांछित न हो।
राज्यपाल की मंजूरी के बाद कारागार विभाग ने पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की रिहाई का आदेश जारी कर दिया है। आदेश में कहा गया है कि 30 जुलाई 2023 तक उदयभान करवरिया ने आठ वर्ष तीन माह 22 दिन की अपरिहार सजा और आठ वर्ष नौ माह 11 दिन की सपरिहार सजा काट ली है। एसएसपी और डीएम प्रयागराज द्वारा समयपूर्व रिहाई की संस्तुति किए जाने, जेल में करवरिया का आचरण उत्तम होने और दयायाचिका समिति द्वारा की गई संस्तुति के चलते समयपूर्व रिहाई का आदेश किया जा रहा है। आदेश में कहा गया है कि एसपी और डीएम प्रयागराज के संतोषानुसार दो जमानतें, उतनी ही धनराशि का एक जाती मुचलका प्रस्तुत करने पर बंदी को मुक्त कर दिया जाए।
बालू के ठेकों को लेकर शुरू हुई थी अदावत
करवरिया परिवार और पूर्व विधायक जवाहर पंडित के बीच बालू के ठेकों पर वर्चस्व को लेकर अदावत शुरू हुई थी। जवाहर पंडित झूंसी इलाके में रहते थे और करवरिया परिवार अतरसुइया के खुशहाल पर्वत मुहल्ले में रहता था। जवाहर पंडित जौनपुर के खैरतारा गांव से वर्ष 1980 में इलाहाबाद आकर बसे थे। जवाहर पंडित ने शुरुआती दौर में मंडी में बोरी सिलने का काम किया। फिर शराब के धंधे में घुस गए। इसके बाद बालू के ठेकों के लिए हाथ मारने शुरू कर दिए। यहीं से जवाहर पंडित और करवरिया परिवार के बीच तनातनी शुरू हो गई। जवाहर पंडित की 1989 में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से मुलाकात हुई, तो वह कुछ ही समय में उनके करीबी हो गए। वर्ष 1993 में सपा की सरकार बनी और जवाहर पंडित विधायक। देखते ही देखते शहर में उनका जलजला हो गया।
बालू के ज्यादातर ठेकों पर जवाहर पंडित का कब्जा हो गया। करवरिया परिवार का धंधा ठप होने लगा। बातचीत कर मामला सुलझाने की कोशिश की गई, लेकिन बात बनी नहीं, बल्कि अदावत और बढ़ गई, लेकिन सपा की सरकार होने से जवाहर पंडित का पलड़ा भारी रहा। वर्ष 1996 में प्रदेश के सियासी समीकरण बदले, गेस्ट हाउस कांड हुआ, सपा की सरकार गिर गई। सरकार के गिरते ही करवरिया बंधुओं ने जवाहर पंडित को ठिकाने लगाने की ठान ली। इसका आभास जवाहर पंडित को भी था। उन्होंने दो बार अपनी सुरक्षा की गुहार लगाई, लेकिन इससे पहले 13 अगस्त 1996 को उनकी हत्या हो गई।
कलराज मिश्रा ने दी थी करवरिया बंधुओं के पक्ष में गवाही
जवाहर पंडित हत्याकांड में तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्रा ने कपिलमुनि करवरिया के पक्ष में गवाही दी थी। दरअसल, पंडित की हत्या के बाद उसके हिस्ट्रीशीटर भाई सुलाकी यादव ने हत्याकांड में कपिल मुनि करवरिया, उदय भान करवरिया, सूरजभान करवरिया, श्याम नारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी को नामजद किया था। इसमें से श्याम नारायण करवरिया उर्फ़ मौला महाराज (उदयभान के चाचा) की 1996 में मौत हो गई थी। तीनों भाइयों ने दावा किया कि वे घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे। कपिल मुनि करवरिया ने दावा किया था कि वो उस दिन इलाहाबाद में नहीं थे और उन्होंने अपना पूरा दिन बीजेपी नेता कलराज मिश्र के साथ बिताया था। कलराज मिश्र ने इस बयान के पक्ष में तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी को खुला खत लिखा था और मामले की सीबी सीआईडी जांच की मांग की थी। कलराज मिश्र कपिलमुनि के पक्ष में गवाही भी देने आए थे, लेकिन कोर्ट ने उनकी गवाही को स्वीकार नहीं किया था।
बीजेपी सरकार ने की थी केस वापसी की पैरवी
जवाहर पंडित हत्याकांड में करवरिया बंधुओं को सजा होने के ठीक 13 महीने पहले चार अक्टूबर 2018 को उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद सेशन कोर्ट में केस वापसी की अर्जी दाखिल की थी। सरकार की तरफ से कहा गया था कि करवरिया बंधुओं के के खिलाफ आरोप साबित होने के लिहाज से पर्याप्त सबूत नहीं है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ जवाहर पंडित की पत्नी विजमा यादव हाईकोर्ट गई थीं। हाईकोर्ट ने सरकार की इस अपील को ख़ारिज करते हुए मुकदमा जारी रखने के निर्देश दिए थे।
